रोज सफलता के किस्से,
भर गए , जीवन के हिस्से,
मगर न कोई, हमसफ़र है,
कैसा निर्जन ,यह सफ़र है.
रात की नींदों को त्यागे,
किसलिए तुम जागते हो?
कहाँ जाना चाहते हो?
न पिता की छत्र-छाया,
न बहन का स्नेह पाया,
माँ की ममता से भी वंचित,
न प्रेम -रस से हुए सिंचित.
किन सुखों को पाने हेतु,
इन सबों को त्यागते हो?
कहाँ जाना चाहते हो?
दौलत हीं दौलत माँग लाया.
रोक दे मुझको , उठाना,
मगर,रोक न उसको गिराना,
स्वप्न में भी,तुम खुदा से,
क्या यही बस मांगते हो?
कहाँ जाना चाहते हो?
अर्थ का रंगी ज़माना,
हर ख़ुशी के दाम पाना.
तुमने सीखा है, यहाँ पर,
एहसान कर, इतना बताकर.
अपनी हीं छाया के तले से,
क्यों सदा तुम भागते हो?
कहाँ जाना चाहते हो?