सतरंगी किरनें मधुर लय में गा रही हैं,
शाम की बहार पल - पल छा रही हैं.
पंछी अपने घोंसलों को जा रहे हैं,
भवरें नया गीत गुनगुना रहे हैं.
रेशमी आगोश में, शिशु को लिटाये,
माँ खड़ी है , लज्जा से गर्दन झुकाए.
लोरियों की तान में वह सो पड़ा है,
वहाँ जहाँ स्नेह - अमृत हीं भरा है.
बगल की सभी डालियाँ , जब झूमती है,
माँ ख़ुशी से , लाल को भी चूमती है.
स्वप्न के शहर में है, खोया हुआ वह,
माँ की गोद में , यूँ है सोया हुआ वह.
जैसे वह आगोश हो, फूलों का उपवन,
कमल-कोमल कलियों का सुन्दर बिछावन.
जैसे वह आगोश हो, सुरभित सरोवर,
प्रेम रस का छाँव देता कोई तरूवर.
जैसे वह आगोश हो, ज़न्नत की दुनिया,
साथ में समेटें हो , हर एक खुशियाँ.
यही मेरी जिंदगी , समतल धरातल,
यही मेरी खुशियों से, विरक्त बादल,
यही मेरी तृष्णा, जो कर देती बेकल,
याद करता हूँ, मैं जब भी,
माँ का आँचल.....