Friday, January 20, 2012

दूरी



यह कैसी है दूरी,
हमारे आपके बीच में,
एक ही कमरे  में ,
हम दोनों खड़े है.
मगर सामानांतर विचारों पर,
आपस में अड़े है.

अन्य लोगों के सामने,
आपके उज्ज्वल ललाट पर,
कैसी मुस्कान छायी होती है.
मैं बयाँ नहीं कर सकता,
कि आपके उस रूप से,
मुझे कितनी ख़ुशी होती है.
मगर मेरे सामने आते हीं,
वहाँ खामोशी छा जाती है.
मेरे लिए तो मानो,
क़यामत हीं आ जाती है..

आपकी वह  गहन चुप्पी,
मेरा साहस तोड़ देती है,
चाहता हूँ  कुछ कहना,
मगर कोई अदृश्य शक्ति,
मुझे स्वयं रोक देती है.

क्या कहूँ मै आपसे,
ऐसा लगता है मानो,
मेरी हरेक गलती को,
आप स्वयं जानते है.
उपलब्धियों के बारे में,
फिर मैं आपसे क्या कहूँ,
जब आप मेरी क्षमता को,
स्वयं हीं पहचानते है.

आप मेरे पिता हैं,
और मै आपका पुत्र.
मगर आज तक न समझा, 
इस रिश्ते का सूत्र.

कौन है दीवार,
आपकी वह गहन चुप्पी,
या मेरा अदृश्य डर.
या इससे भी बढ़कर,
युग - परिवर्तन का क़हर.

दोष सिर्फ मेरा है,
ह्रदय मानने को तैयार नहीं.
जबकि मुझे भी ज्ञात है,
कि आने वालें समय में,
जब मेरे भी बच्चे होंगे,
वे भी ऐसा हीं सोचेंगे.
उस अनजाने,भविष्य की,
कल्पना मात्र से, सिहर जाता हूँ.
मगर चाहकर भी ,इस दूरी को,
 मैं मिटा नहीं  पाता  हूँ. 



                             

Thursday, January 12, 2012

अभागिन



अभागिन -
               सिर झुकाए बैठी है,
लेकर -
थकी हुई आँखें,
पथरायी हुई बाहें.
जिनमे न कोई मंजर है,
न कोई कहानी.
एक क्षण में बीत गई,
उसकी भरी जवानी.

                                             क्या बचा है शेष,
                                             कुछ यौवन के अवशेष,
                                             वह भी काले लिबास में,
                                             रोज की परिहास में.

आँचल अलग गिरा है,
तन खुला पड़ा है.
संभालती नहीं वह,
जहाँ उसकी लाज है.
जिसे सदैव ढकें रखना,
समाज में रिवाज है.
                                             बगल में ही सिर झुकाए,
                                             खड़ा बूढ़ा बाप है.
                                             उसकी यह वृधा-वस्था,
                                             उसके लिए अभिशाप है.
                                             क्या करेगा वह भला,
                                             जब स्वयं विधाता भी,
                                             इस घड़ी चुप-चाप है.
                                             शायद वह भी भूल गया,
                                             क्या सही, क्या पाप है?

आँगन में उसकी  बहन है.
जो देख, मुस्कुराती है.
कोई गीत गुनगुनाती है.
इसमें उसकी क्या है गलती,
वह अभी अबोध है.
उसे क्या पता है, यौवन,
गति या ,अवरोध है.
                                              काश! वह समझ पाती,
                                              जिंदगी की हार को.
                                              सदियों से होती रही,
                                              भीषण अत्याचार को.
                                              अपनी बहन के साथ घटित,
                                              घृणित  बलात्कार को.............
                  
                                              

Sunday, January 8, 2012

कैसा यह जहान है?

ऐ खुदा ! तू ही बता, तेरा कैसा यह जहान है?
तुने बनाया था जिसे, क्या आज वही इंसान है?

एक दी सबको लहू, और एक जैसी आत्मा,
फिर क्यों किसी के नाम में,सरदार,सिंहऔर खान है.

जिन्हें फरिश्ता जानकर, हम उनके पीछे हो लिए,
अब उन्हीं पैरों तले , कुचलती अपनी जान है.

देखता हूँ जिंदगी भर, लोग मरते हैं यहाँ,
यह जानकर कि वे भी,कुछ दिनों के मेहमान है.

हँसी तो उनपर आती है, जो रोज मौत देते है,
क्योकि वे अभी तक ,अपने मौत से अंजान है.

रौशनी इतनी जो की, कुछ भी दिखाई न दिया,
यह रौशनी भी कुछ नहीं,अंधेरे के समान है.

चंद सिक्कों के लिए , इंसान कितना गिर गया,
मैं तो क्या,तुम्हें भी, अब इसका कहाँ अनुमान है.

तेरे ही जहान से ,कितनो की दुनिया, छिनकर,
मंच से कहते हैं फिर, हमारा भी ईमान है.      

Friday, January 6, 2012

बेवफा की याद

इश्क की राहों में अब तो, ऐसी भी रुस्बाई है.
बेबसी कहो इसे तुम ,   पर वो बेवफाई है.
ख्वाब रंगी क्या सजाऊँ , गर्दिशों के घेरे में,
जब शेष मेरी जिंदगी में, बस यही तन्हाई है.

जानता तो मैं भी था, एक दिन कभी जुदाई है,
आज न तो कल सही, फिर मौत से विदाई है.
खुदा कसम तन्हाइयों में ,जिंदगी बिता देता,
जो जानता कि इश्क मेरा , इस कदर सौदाई है.

भरी दुपहरी है अभी तो ,शाम तक चढ़ाई है,
ग़मों के साए में , तेरी यादों की परछाई है.
कैसे खिला लू नया मंजर , राह उल्फत में बता,
टूटे घरोंदो की आह दिल में ,आज भी समाई है.

वेश्या क़ी आत्मकथा

मै एक वेश्या-

कभी थी मैं भी चंचल,
इतराती, खिलखिलाती,
उमंगो की धवल  पर,
स्वप्नों को सजाती.

फिर आ गया भी वह दिन,
यौवन कली बनी मैं.
नव कुसुम के नवल रस के,
भार से लदी मैं.

हाय रे भाग्य !किस तरह वह रूठा,
परिस्थितियों ने मुझे किस कदर फिर लूटा.
उमंगो का दमन कर अपना ली मृत्यु-शय्या,
विवशता के दौर में बन गयी एक वेश्या.

छुटा हरेक नाता,
माँ, बहन,बेटी का मुझमे,
अब रूप कैसे आता,
राह चलता मनुज भी,
कुलटा पुकार जाता.

चाहती हूँ लौटना,
मगर देखती हूँ द्वार पर,
नर -भेड़िये खड़े हैं,
नग्न करने को मुझे ,
वे बेकल पड़े हैं.

दिन के उजालों में,
कोई स्वीकार करे या नहीं,
मगर गर्व है ,मुझे इस बात का,
कितने अभागो के दर्द पर,
मरहम मैं लगाती हूँ.
निस्तब्धता के दौर में,
जब कुछ नहीं है सूझता,
अभागों का अपना भी,
जब नहीं है पूछता,
उस वक्त उनके सामने,
प्रेम- स्नेह, ममता का,
स्रोत ही बन जाती हूँ.

गम भी होता है मुझेकि,
रोज जिनकी आत्मा क़ी
प्यास मैं बुझाती हूँ
जिनके सुने ह्रदय में ,
जीने का उत्साह जगाती  हूँ
उन्हीं लोगों से भरे समाज में,
पतिता पुकारी जाती हूँ ?


क्या कहोगे तुम इसे यह भी कोई शमशान है?




क्या कहोगे तुम इसे यह भी कोई शमशान  है,
जिधर भी देखो , हर तरफ शीशे का ही मकान है.

चांदनी छिटकी पड़ी है , सफ़ेद वस्त्रों के लिए,
हमारे घर में तो अँधेरा ,सदा से विद्यमान है.

भूखे तड़पता देखकर , जूठा निवाला दे दिया,
रहम दिल वालों का, यह कितना बड़ा एहसान है.

हम चाहें निर्वस्त्र हो ,पर सूट उनको चाहिए,
क्योकि वे हीं राष्ट्र की, गौरव गरिमा शान हैं.

धर्म पालन पूर्ण कर ,ईश्वर की पूजा क्या करें,
जब हमारी किस्मतें, इनकी ही कद्रदान हैं.

हमारी माँ को वे बनाये दासी , या बहन को वे नचायें
चुपचाप सह लो खड़े होकर ,यह भी कोई अपमान है.

वे सभ्य हैं, शिक्षित भी हैं,शक्ति सामर्थ्य से भरे,
हम तो निरे मूर्ख पापी, उधम और नादान हैं.