यह कैसी है दूरी,
हमारे आपके बीच में,
एक ही कमरे में ,
हम दोनों खड़े है.
मगर सामानांतर विचारों पर,
आपस में अड़े है.
अन्य लोगों के सामने,
आपके उज्ज्वल ललाट पर,
कैसी मुस्कान छायी होती है.
मैं बयाँ नहीं कर सकता,
कि आपके उस रूप से,
मुझे कितनी ख़ुशी होती है.
मगर मेरे सामने आते हीं,
वहाँ खामोशी छा जाती है.
मेरे लिए तो मानो,
क़यामत हीं आ जाती है..
आपकी वह गहन चुप्पी,
मेरा साहस तोड़ देती है,
चाहता हूँ कुछ कहना,
मगर कोई अदृश्य शक्ति,
मुझे स्वयं रोक देती है.
क्या कहूँ मै आपसे,
ऐसा लगता है मानो,
मेरी हरेक गलती को,
आप स्वयं जानते है.
उपलब्धियों के बारे में,
फिर मैं आपसे क्या कहूँ,
जब आप मेरी क्षमता को,
स्वयं हीं पहचानते है.
आप मेरे पिता हैं,
और मै आपका पुत्र.
मगर आज तक न समझा,
इस रिश्ते का सूत्र.
कौन है दीवार,
आपकी वह गहन चुप्पी,
या मेरा अदृश्य डर.
या इससे भी बढ़कर,
युग - परिवर्तन का क़हर.
दोष सिर्फ मेरा है,
ह्रदय मानने को तैयार नहीं.
जबकि मुझे भी ज्ञात है,
कि आने वालें समय में,
जब मेरे भी बच्चे होंगे,
वे भी ऐसा हीं सोचेंगे.
उस अनजाने,भविष्य की,
कल्पना मात्र से, सिहर जाता हूँ.
मगर चाहकर भी ,इस दूरी को,
मैं मिटा नहीं पाता हूँ.